दुनिया के 216 देश इस समय कोरोनावायरस से जूझ रहे हैं। दुनियाभर में इससे संक्रमित लोगों की संख्या 1 करोड़ के पार पहुंच गई है। मौतों का आंकड़ा भी 5 लाख के ऊपर आ गया है।
अब बस एक ही सवाल सबके जहन में आता है कि आखिर कब तक हमें कोरोना से लड़ना पड़ेगा? कब तक इसकी कोई असरदार दवा या वैक्सीन आ पाएगी? तो इसका जवाब अभी किसी के पास भी नहीं है।
हालांकि, डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 28 जून तक दुुनियाभर में कोरोना की 148 वैक्सीन पर काम चल रहा है। इनमें से 131 वैक्सीन प्री-क्लीनिकल प्रोसेस में है, जबकि बाकी 17 वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के फेज में आ गई हैं।
आमतौर पर किसी भी बीमारी की वैक्सीन बनने में 15 साल से भी ज्यादा का वक्त लगता है। लेकिन, दुनियाभर में कोरोना की वैक्सीन को लेकर जिस तेजी से काम चल रहा है, उससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस साल के आखिर तक या जून 2021 तक हमारे पास एक अच्छी वैक्सीन होगी।
कुछ दिन पहले ही डब्ल्यूएचओ की चीफ टेड्रोस अधेनॉम गेब्रेसियस ने भी एक साल के अंदर कोरोना की वैक्सीन आ जाने की उम्मीद जताई है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की कोविड वैक्सीन तीसरे फेज में
ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और वहां की एक कंपनी एस्ट्राजैनेका (AstraZeneca) एक वैक्सीन पर काम कर रही है। ये वैक्सीन ह्यूमन ट्रायल के तीसरे फेज में पहुंच चुकी है।
वैक्सीन के प्रोडक्शन के लिए एस्ट्राजैनेका ने कई कंपनियों से हाथ मिलाया है। इसमें भारत की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी है। इन कंपनियों की मदद से कंपनी जून 2021 तक 200 करोड़ वैक्सीन बनाना चाहती है।
भारत में भी 14 वैक्सीन पर काम चल रहा
इस महीने की शुरुआत में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन सिंह ने बताया था कि भारत में कोरोना की 14 वैक्सीन पर काम चल रहा है। इनमें से 4 वैक्सीन का काम अगले 3 से 5 महीनों में क्लीनिकल ट्रायल के फेज में पहुंचने की उम्मीद है।
इन सबके अलावा दुनियाभर में जिन 148 वैक्सीन पर काम चल रहा है, उसमें 5 या तो भारतीय कंपनियों की है या फिर भारतीय कंपनियां हिस्सेदार हैं। गुजरात की जायडस कैडिला कंपनी भी है। इसी कंपनी ने 2010 में देश में स्वाइन फ्लू की सबसे पहली वैक्सीन तैयार की थी।
इसके अलावा भारत बायोटेक दो, इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स लिमिटेड और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया 1-1 वैक्सीन पर दूसरे देशों की संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रही हैं।
वैक्सीन के लिए कितना खर्चा?
कोरोना महामारी से निपटने के लिए दुनियाभर की सरकारें करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं। भारत में भी पीएम केयर्स फंड से 100 करोड़ रुपए वैक्सीन पर खर्च हो रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कोरोना से संक्रमित होने का खतरा सभी को है, इसलिए इसके इलाज और रोकथाम के उपाय भी सभी के लिए होने चाहिए।
इसी हफ्ते यूएन ने भी कहा है कि कोरोना के असरदार इलाज और वैक्सीन के लिए अगले 12 महीनों में 31 अरब डॉलर (करीब 2.35 लाख करोड़ रुपए) की जरूरत होगी।
अप्रैल में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने भी अनुमान लगाया था कि अगर हम कोरोना की कोई कारगर वैक्सीन बना भी लेते हैं, तो हमें इसकी मैनुफैक्चरिंग और डिस्ट्रीब्यूशन के लिए 25 अरब डॉलर (करीब 1.90 लाख करोड़ रुपए) की जरूरत होगी।
बिल गेट्स ने भी एक ब्लॉग के जरिए कहा था कि अगर हम कोरोना की कारगर वैक्सीन बनाने में कामयाब होते हैं, तो इससे हम लाखों करोड़ रुपए बचाने में भी कामयाब होंगे।
किस देश को सबसे पहले मिलेगी कोरोना की वैक्सीन?
अगर कोरोना की कोई वैक्सीन बन जाती है, तो ये सबसे पहले किसे मिलेगी? तो इसका जवाब तो यही है कि जो देश पहले इस वैक्सीन को बनाएगा, वहीं के लोगों को सबसे पहले वैक्सीन मिलेगी।
पिछले हफ्ते अमेरिका के टॉप इन्फेक्शियस डिसीज एक्सपर्ट डॉ. एंथनी फाउची ने कहा है कि उन्हें इस साल के आखिर तक या 2021 की शुरुआत में कोरोना की एक वैक्सीन मिलने की उम्मीद है।
अमेरिका के अलावा ब्रिटेन और चीन भी वैक्सीन पर करोड़ों खर्च कर रहे हैं। ब्रिटेन की एस्ट्राजैनेका ने वैक्सीन के प्रोडक्शन के लिए भारत की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से पार्टनरशिप की है। अगर एस्ट्राजैनेका वैक्सीन बना लेती है, तो सीरम इंस्टीट्यूट भारत में भी 1 अरब डोज तैयार कर लेगी।
तब भी सबसे बड़ा सवाल, क्या कोरोना की वैक्सीन आ पाएगी?
कोरोनावायरस से बचने के लिए वैक्सीन का काम भले ही तेजी से चल रहा हो और दुनियाभर में वैक्सीन के आने पर उम्मीदें जताई जा रही हों। लेकिन, फिर भी एक सवाल यही है कि क्या कोरोना की वैक्सीन बन पाएगी?
ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोनावायरस भी एक तरह का फ्लू है। फ्लू की बीमारी करीब सैकड़ों साल पुरानी है, लेकिन आज तक फ्लू की कोई वैक्सीन नहीं बन सकी है। यही कारण है कि हर साल सर्दी-जुकाम की बीमारियां फैलती हैं।
इसके अलावा इसका दूसरा कारण ये भी है कि कुछ खतरनाक बीमारियों की वैक्सीन अभी तक नहीं बन सकी।
1981 में एचआईवी वायरस फैला। इस वायरस की वजह से इंसानों में एड्स की बीमारी फैलती है। 4 दशक बीत जाने के बाद भी इस बीमारी की कोई असरदार दवा या वैक्सीन नहीं बन सकी। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, इससे अब तक 3.5 करोड़ से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
इसके बाद 2002-03 में चीन से ही सार्स फैला। दुनियाभर में इसके करीब साढ़े 8 हजार मामले सामने आए थे, जबकि 750 से ज्यादा लोगों की जान गई थी। हालांकि, जल्द ही इस बीमारी पर काबू पा लिया गया था, लेकिन कोई वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी।
2015 में मर्स वायरस फैला था। इससे अब तक ढाई हजार लोग संक्रमित हो चुके हैं और 850 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। अभी भी मर्स वायरस पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है और कुछ देशों में इसके मामले अभी भी आते रहते हैं। लेकिन, इसकी भी कोई वैक्सीन अभी तक तैयार नहीं हो सकी है।
कुछ वैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि सार्स और मर्स जैसे वायरस फैलने के बाद अगर इन बीमारियों से निपटने के लिए वैक्सीन पर काम जारी रहता तो कोरोना की वैक्सीन बनाने में ज्यादा कठिनाई नहीं आती। क्योंकि, सार्स और मर्स भी कोरोनावायरस ही है।
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