कोरोना के चलते पढ़ाई बंद हो गई तो इंजीनियर से मैथ्स टीचर बने मुनीर ईदगाह मैदान में बच्चों को पढ़ाने लगे, ताकि सोशल डिस्टेंसिंग संभव हो

मुनीर आलम, उम्र 40 साल।रोज सुबह जल्दी उठ जाते हैं और अपनी गाड़ी में बोर्ड, कुछ कुर्सियांऔर मार्कर रखकर ठीक 5 बजे श्रीनगर के ईदगाह मैदान पहुंच जाते हैं। इसके बाद वे मैदान में कुर्सियां रखते हैंऔर उसपरबोर्ड लगा देते हैं। फिर ओपन ग्राउंड में शुरू होती है मैथ्स की क्लास। मुनीर ने एनआईटी श्रीनगर से इंजीनियरिंग की है और वे पिछले 20 साल से 11-12वीं के बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

कोरोना महामारी की वजह से जब देशभर में लॉकडाउन लगा तो सभीस्कूल-कॉलेज और कोचिंग संस्थान बंद कर दिए गए। तब से लेकर अभी तक पाबंदी जारी है। जम्मू-कश्मीर में 28 जून तक 6966 कोरोना के मामले आएहैं। जबकि 93 लोगों की मौत हुई है।

मुनीर आलम पिछले एक सप्ताह से बच्चों को श्रीनगर के ईदगाह में पढ़ा रहे हैं। ताकि कोरोनाकाल में इनकी पढ़ाई बाधित नहीं हो।फोटो- आबिद भट्ट

मुनीर बताते हैं कि पिछले तीन महीने से घर में बैठे-बैठे परेशान हो गया था। छात्रों की पढ़ाई और उनके फ्यूचर की चिंता हो रही थी। वे कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में 2008 से अबतक पत्थरबाजी और कर्फ्यू का दौर रहा, लेकिन उस समय इतने मुश्किल हालात का सामना नहीं करना पड़ा जो आज करना पड़ रहा है।

लॉकडाउन के बाद देशभर में ऑनलाइन क्लास शुरू हुए,लेकिन यहां तो टूजी इंटरनेट चलता है, कई बार वो भी बंद हो जाता है।मैंने एक महीना बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाया। मुझे जमा नहीं और स्टूडेंट्स को भी इसका ज्यादा फायदा नहीं हो रहा था। उलटे वे कन्फ्यूजहो रहे थे। मैं कुछ दिनों से इन छात्रों के लिए कुछ करने का प्लान बना रहा था ताकि इनका फ्यूचर बर्बाद न हो।

मुनीर ने एनआईटी श्रीनगर से इंजीनियरिंग की है। वे पिछले 20 साल से मैथ्स पढ़ा रहे हैं।फोटो- आबिद भट्ट

मुनीर बताते हैं पिछले महीने दिमाग में ओपन क्लास लेने का आइडिया आया। लेकिन, उसके पहले बच्चों को कोरोना से जागरूक करनाऔर उससे जुड़ेप्रोटोकॉल्स के बारे में समझाना जरूरी था। ताकि जब हम बाहर जाएं तोपरेशानी नहीं हो। इसलिए पहले घर के बाहर लॉन में 4-5 बच्चों को पढ़ने के लिए बुलाया। उन्हें कोरोना से बचने के प्रोटोकॉल्स के बारे में जानकारी दी, उन्हें गाइड और मॉटिवेट किया। जब मुझे लगा कि बच्चे ट्रेंड हो गए हैं तब पिछले सप्ताह ओपन क्लास लगाना शुरू किया।

मुनीर ने पहले 20 बच्चों के साथ ओपन ग्राउंड में सोशल डिस्टेंसिंग को फॉलो करते हुए पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद बच्चे बढ़ते गए।वे अभी 40 बच्चों को पढ़ा रहे हैं। सुबह ठीक 5.30 बजे उनकी क्लास शुरू हो जाती है। छात्र एक दूसरे से दूरी बनाकर बैठते हैं। मुनीर बताते हैं कि हमने सुबह का समय इसलिए तय किया है ताकि बच्चों को धूप से परेशानी नहीं हो। एक फायदा यह भी है कि सुबह ट्रैफिक स्लो होता है और भीड़ भी नहीं होती हैं।

मुनीर ने 20 छात्रों के साथ ओपन क्लास शुरू किया, अभी करीब 40 बच्चों को पढ़ाते हैं। फोटो- आबिद भट्ट

वे कहते हैं कि जिन बच्चों ने पिछले साल फीस भर दी थी, उनसे कोई एक्स्ट्रा पैसे नहीं लेता हूं। साथ ही अब जो नए बच्चे आ रहे हैं, उनसे भी पैसे नहीं मांगता हूं। क्योंकि मुझे पता है अभी लोग किन हालातों से गुजर रहे हैं। मैंने पैरेंट्स से बोल रखा है कि जब सबकुछ पटरी पर लौट आए तो भले फीस दे देना लेकिन, अभी किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है।

मुनीर बताते हैं कि हमने बचपन से जम्मू-कश्मीर के हालात को देखा है। यहां कर्फ्यू और पत्थरबाजीकी वजह से छात्रों की पढ़ाई डिस्टर्ब होती रही है। जब मैं 12वीं में था तो करगिल की वजह से मेरा एक सेमेस्टर बर्बाद हो गया।इसलिए मैंने इंजीनियरिंग करने के बाद जॉब के लिए अप्लाई ही नहीं किया और एजुकेशन को ही करियर चुन लिया। मुनीरइंजीनियरिंग करने से पहले से ही छात्रों को पढ़ा रहे हैं। कुछ सालों तक उन्होंने श्रीनगर केइकबाल मेमोरियल इंस्टिट्यूट में भी पढ़ाया।

मुनीर के इस नई पहल की तारीफ हो रही है, बच्चों के पैरेंट्स उनको सपोर्ट कर रहे हैं। फोटो- आबिद भट्ट

अगस्त 2019 से अब तक सिर्फ 14-15 ही क्लास हुए हैं

मुनीर कहतेहैं कि एक टीचर के नाते मुझे तकलीफ होती है जब छात्र क्लास नहीं कर पाते हैं।पिछले साल अगस्त से अब तक पूरे श्रीनगर में सिर्फ 14-15 ही क्लास हुए हैं। आर्टिकल 370 हटाने के बाद जब कर्फ्यू लगा तो एजुकेशन सिस्टम बंद कर दिया गया और उसके बाद फिर कोरोना आ गया। पिछले10 महीने से छात्रों की ठीक से पढ़ाई नहीं हो पाई है। उनके सिर परकॉम्पिटिटिव एग्जाम्स हैं, वे पढ़ेंगे ही नहीं तो परीक्षा में क्या लिखेंगे, कैसे पास होंगे।

एजुकेशन को एसेंशियल सर्विस बनाने की मांग
मुनीर कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान मेडिकल सर्विसेज, हेल्थ सर्विसेज, मीडिया और खाने-पीने की चीजें जैसी सेवाएं चालू रहीं। लेकिन, एजुकेशन को बंद कर दिया गया। वे बताते हैं कि सारे आउटलेट्स खोल दिए गए लेकिन उसकी फैक्ट्री ही बंद कर दी गई। अगर छात्र पढ़ेगा ही नहीं तो वह आगे चलकर डॉक्टर या पत्रकार कैसेबनेगा। उन्होंने कहा कि हमें एजुकेशन को भी एसेंशियल सर्विस में शामिल करना चाहिए।

मुनीर देशभर के शिक्षकों से अपील करना चाहते हैं कि छात्रों के हित में वे लोग भी कुछ पहल करें। फोटो- आबिद भट्ट

डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं बच्चे
मुनीर बताते हैं कि पिछले कई महीनों से छात्र स्कूल-कॉलेज नहीं जा रहे हैं, पढ़ाई बंद है। उनकी आउट डोर एक्टिविटिज भी बंद हैं। ऐसे में वे घर में बैठे-बैठे परेशान हो रहे हैं, डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। अगर हमने इस समस्या को दूर करने की कोशिश नहीं की तो यह कोरोना से भी बड़ी मुसीबत साबित होगी।

मुनीर कहते हैं कि हमें एजुकेशन को भी एसेंशियल सर्विस में शामिल करना चाहिए। फोटो- आबिद भट्ट

मुनीर कहते हैं कि मेरे काम की तारीफ हो रही है। लोकल के साथ -साथ दूसरे जगहों के लोग भी मुझेएप्रिशिएट कर रहे हैं। लेकिन, मैं अकेलाक्या कर सकता हूं, कितने बच्चों को पढ़ा सकता हूं। इसलिए मैं एजुकेशनिस्ट से अपील करना चाहता हूं कि स्टूडेंट्स के बारे में, उनके फ्यूचर के बारे में सोचेंऔर कोई न कोई उपाय कर के क्लासेज शुरू हो ताकि बच्चों की पढ़ाई भी बाधित न हो और वे डिप्रेशन का शिकार होने से भी बच सकें। - श्रीनगर से मुनीर आलम ने दैनिक भास्कर के इंद्रभूषण मिश्र से फोन पर यह जानकारी साझा की।



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मुनीर आलम रोज सुबह 5 बजे श्रीनगर के ईदगाह मैदान पहुंच जाते हैं। 5.30 बजे से उनकी ओपन ग्राउंड में क्लास शुरू हो जाती है।


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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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