दुनियाभर में कोरोना के 1 करोड़ मामले हो चुके हैं। यानी वायरस अपने उस रौद्र रूप में है, जिसे देखइंसानी जाति की सांसें सचमुच अटक रही हैं। चीन के वुहान से निकलीकोरोना महामारी जब यूरोप और अमेरिका पहुंची तो उसके साथ नई शब्दावली भी सामने आई।
ये ऐसे शब्द थे जो वैज्ञानिक और प्रशासनिक जगत में तो प्रचलित थे, लेकिन पहली बार आम लोगों का वास्ता इनसे पड़ा और फिर लगातारऐसा पड़ा कि अब इनके बिना कोरोना की चर्चा ही अधूरी लगती है। ये दुनिया की तमाम भाषाओं के सबसे जरूरी शब्दबन गए हैं।
कोरोनाकाल में चर्चित हुए 10 सबसे महत्वपूर्णशब्दों को आज भी समझने और उन पर लगातार अमल की जरूरत है, आज इन्हीं शब्दों में गुंथीकहानी, तस्वीरों की जुबानी...
मित्रों! लक्ष्मण रेखा न लांघें : यह तस्वीर 24 मार्च की है, जब पीएम नरेंद्र मोदी ने पहली बार देश में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की थी। रात के 8 बजे हमेशा की तरह मित्रों वाला संदेश लेकर आएपीएम ने इस बार देशवासियों से घर की लक्ष्मण न पार करने की अपील की थी। अपनी बात को सबको समझाने के लिए उन्होंने एक प्लेकार्ड का इस्तेमाल भी किया जिस परसंदेशलिखा था-कोई रोड पर न निकले, जिसके पहले तीन अक्षरों को जोड़करसांकेतिक अर्थ 'कोरोना' भी बन रहा था।
दूर की नमस्ते ही भली: यह तस्वीर 12 मार्च की है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो से मिले थे। यह मुलाकात थोड़ी अलग थी क्योंकि इस बाद ट्रम्प ने किसी का स्वागत वेस्टर्न तरीके सेहाथ मिलाकर या गले लगाकर नहीं बल्कि भारतीय अभिवादन के तरीके को अपनाया औरनमस्कार करके उनका स्वागतकिया था। यह दुनिया के लिएसोशल डिस्टेंसिंग के पुरातन भारतीय तरीकेएक परिचय थाऔर यह तस्वीर खूब चर्चा में रही।
उफ! ये बेरहमी की फुहार: यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की है, जो 30 मार्च को जारी हुई थी। जिले में बाहर से आने वाले लोगों को वायरसमुक्त यानी सैनेटाइज करने के लिए उन परसोडियम हाइपोक्लोराइटके घोल का स्प्रे किया गया। दमकल विभाग की गाड़ी ने एक साथ लोगों पर केमिकल छिड़का तो थके-मांदेलोग सिहर उठे,शरीर और आंखों में खूबजलनहुईं। बच्चे बुरी तरह घबरा गए औररोते हुए नजर आए। सोशल मीडिया पर दर्द की येतस्वीर वायरल हुई और यूपी प्रशासन के इस कदम की दुनियाभर में आलोचनाहुई।
सबसे अमीर आदमी के लिए भी घर ही ऑफिस : यह तस्वीर बदलते वक्त की गवाही दे रहीहै जिसे अमेरिकी कम्पनी माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने 18 मार्च को पोस्ट की और लोगों को वर्क फ्रॉम होम यानी घर से ही ऑफिस का काम करने की अपील की। अमेरिका में 26 जून को 40 हजार 870 कोरोना के नए मामले सामने आए। देश के 50 में 16 राज्यों में हालात ज्यादा खराब हैं। पूरी दुनिया को आंख दिखाने वालासबसे शक्तिमान और संपन्नदेश भीये एक अदृश्य जीव के सामने सरेंडर करने पर मजबूर हुआ।
पास रहते हुए भी दूर-दूर : क्वारैंटाइन महामारी की शुरुआत का सबसे चर्चित और जटिल शब्द रहा, जिसे सबने अपने-अपने अंदाज में पढ़ा, समझा और अमल किया। यह शब्द इटली के क्वारंटा जिओनी से जन्मा है, जिसका अर्थ है 40 दिन का। 600 साल पहले प्लेग से बचने के लिए इटली ने इसे शुरू किया। खास बात यह है कि भारत में यह तरीका सदियों से चला आ रहा है। जैसे नवजात और मां को 10 दिन अलग रखना। सभ्य दुनिया में इसे सी-पोर्ट और एयरपोर्ट पर इस्तेमाल किया जाता था, पर अब ये घर-घर की कहानी है।
घर में कैदखाने जैसी फीलिंग्स: क्वारैंटाइन से ही मिलता-जुलता एक और शब्द है होम आइसोलेशन, लेकिन दोनों में फर्क है। सेल्फ क्वारैंटाइन कर रहे लोग संक्रमित नहीं होते। वे कोविड-19 जैसे लक्षण दिखने पर सावधानी के लिए खुद को अलग करते हैं। वहीं, सेल्फ आइसोलेटेड लोग कोरोना पॉजिटिव होते हैं, जो वायरस की रोकथाम और ट्रीटमेंट के लिए अलग हो जाते हैं।
कोरोना कर्मवीरों का सम्मान : जनता कर्फ्यू, यह शब्द मार्च के तीसरे हफ्ते में चर्चा में आया, जब पीएम मोदी ने 22 मार्च को एक दिन का लॉकडाउन जनता का, जनता के लिए, जनता के हित में लागू किया। शाम को पांच बजते ही पूरा देश तालियों और थालियों की आवाज से गूंज उठा। जो जहां था वो वहीं ठहर गया। झोपड़ी से लेकर महलों तक के लोगों ने कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में गजब एकता दिखाई। उसदिन की यह तस्वीर सबसे चर्चा में रही, जिसमें पीएममोदी की मां ने थाली बजाकर कोरोना कर्मवीरों का उत्साह बढ़ाया।
अब रंगों में हुआ देश का नया बंटवारा: लॉकडाउन के तीसरे चरण में देश के अलग-अलग इलाकों को रेड, ग्रीन और ऑरेंज जोन में बांटा गया। इनके अलावा एक कैटेगरी और बनाई गई कंटेनमेंट जोन की। रेड, ऑरेंज या ग्रीन जोन जिलों के हिसाब से तय किया गया था जबकि कंटेनमेंट जोन इलाकों के हिसाब से तय होता है। अगर किसी इलाके में कोरोना का एक पॉजिटिव केस आता है तो क्षेत्र में कॉलोनी, मोहल्ले या वार्ड की सीमा के अंदर कम से कम 400 मीटर के दायरे को कंटेनमेंट घोषित किया जा सकता है। रोजबदलते नियमों के साथ अब ये भी बदल गया है।
वो शब्द जिसे लोग जानकर भी अंजानथे : महामारी से पहले लोग इम्युनिटी शब्द से वाकिफ थे, लेकिन फरवरी से हर्ड इम्युनिटी शब्द की चर्चा शुरू हुई। हर्ड इम्युनिटी में हर्ड शब्द का मतलब झुंड से है और इम्युनिटी यानी बीमारियों से लड़ने की क्षमता। इस तरह हर्ड इम्युनिटी का मतलब हुआ कि एक पूरे झुंड या आबादी की बीमारियों से लड़ने की सामूहिक रोग प्रतिरोधकता पैदा हो जाना। जैसे चेचक, खसरा और पोलियो के खिलाफ लोगों में हर्ड इम्युनिटी विकसित हुई थी। इसे अमूमन किसी वैक्सीन की क्षमता परखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
अपनों का साथ, अपना-अपनादायरा : अप्रैल के अंत में 'सोशल बबल' शब्द की चर्चा शुरू तो हुई लेकिन ज्यादातर लोग इसे समझ ही नहीं पाए। चर्चा की वजह रहा न्यूजीलैंड, जिसमें सोशल बबल का ऐसा मॉडल विकसित किया जिसे ब्रिटेन और दूसरे देशों ने अपनाया। परिवार के सदस्य, दोस्त या कलीग जो अक्सर मिलते रहते हैं उनके समूह को सोशल बबल कहते हैं। लॉकडाउन के दौरान इन्हें मिलने की इजाजत देने की बात कही गई। मिलने के दौरान दूरी बरकरार रखना जरूरी है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च कहती है कि अगर लोग छोटे-छोटे ग्रुप में एक-दूसरे से मिलें तो वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है।
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