धरती पर सूरज से ज्यादा ऊर्जा पैदा करने के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के तहत भारत सबसे अहम योगदान करने जा रहा है। फ्रांस के कादार्शे में डेढ़ लाख करोड़ रुपए की लागत से बन रहे दुनिया के सबसे बड़े परमाणु फ्यूजन प्रोजेक्ट के लिए मंगलवार को सूरत के हजीरा से ‘क्रायोस्टेट’ का अंतिम हिस्सा भारत से रवाना किया जाएगा। इसे एलएंडटी ने बनाया है।
क्रायोस्टेट स्टील का हाई वैक्यूम प्रेशर चैम्बर होता है। आसान शब्दों में कहें तो जब कोई रिएक्टर बेहद गर्मी पैदा करता है, तो उसे ठंडा करने के लिए एक विशाल रेफ्रिजरेटर चाहिए होता है। इसे ही क्रायोस्टेट कहते हैं। इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आईटीईआर) प्रोजेक्ट के सदस्य देश हाेने के नाते भारत ने इसे बनाने की जिम्मेदारी चीन से छीन ली थी।
इस प्रोजेक्ट के तहत 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस तापमान पैदा होगा, जो सूर्य की कोर से 10 गुना ज्यादा होगा। क्रायाेस्टेट का कुल वजन 3850 टन है। इसका 50वां और अंतिम हिस्सा करीब 650 टन वजनी, 29.4 मीटर चाैड़ा और 29 मीटर ऊंचा है। रिएक्टर फ्रांस के कादार्शे में बन रहा है। विश्वव्यापी लॉकडाउन के बावजूद भारत इसके हिस्से को बनाकर फ्रांस भेजता रहा था।
इन सभी हिस्सों को जाेड़कर चैम्बर का आकार देने के लिए भारत ने कादार्शे के पास एक वर्कशॉप भी बनाई है। इस प्राेजेक्ट में भारत का योगदान 9% है, लेकिन क्रायोस्टेट देकर देश के पास इसके बौद्धिक संपदा के अधिकार सुरक्षित रहेंगे। आईटीईआर की यह मैग्नेटिक फ्यूजन डिवाइस की परियोजना परमाणु विखंडन के बजाए सूरज की तरह परमाणु संलयन करने की वैज्ञानिक और तकनीकी व्यावहारिकता को प्रयोग के तौर पर साबित करने के लिए है।
भारत-अमेरिका, जापान समेत 7 देश इस संयंत्र को मिलकर बना रहे
धरती पर सूरज से ज्यादा ऊर्जा पैदा करने का जिम्मा 7 देशों ने उठाया है। इसमें भारत के अलावा यूरोपीय देश, अमेरिका, जापान, चीन, फ्रांस और रूस शामिल हैं। भारत को क्रायोस्टेट बनाने का जिम्मा मिला था। इसका निचला सिलेंडर पिछले साल जुलाई में और मार्च में इसके ऊपरी सिलेंडर को भेजा गया था। अब इसकी ऊपरी सतह भेजी जा रही है।
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