हजारों सालों से इन्हीं के हिस्से थी वैष्णोदवी की पूजा, 34 साल पहले अचानक गुफा से बाहर कर दिए गए

बात 30 अगस्त 1986 की है। तब शंकार सिंह मां वैष्णोदेवी की गुफा के अंदर दर्शनार्थियों को मां के दर्शन करवा रहे थे। करीब 40 से 50 भक्त गुफा के अंदर थे। शंकार के अलावा मंगलसिंह और जमीत सिंह भी गुफा में ही थे। दोपहर के बाद मां के भवन के बाहर सीआरपीएफ, जम्मू एंड कश्मीर पुलिस के साथ ही पटवारी, तहसीलदार, एसडीएम सहित डीसी भी जमा हो चुके थे।

रात को साढ़े बारह बजे एसडीएम और डीसी दर्शन करने के लिए गुफा के अंदर गए। आधे घंटे वहीं बैठे रहे। साथ में पुलिसवाले भी थे। इन्होंने दर्शन किए, टीका लगाया और फिर ये गुफा से बाहर आ गए। बाहर आकर थोड़ी देर बाद डीसी ने एसडीएम से फिर पूछा कि आप कौन से रास्ते दर्शन के लिए जाएंगे और दोनों नई गुफा के रास्ते फिर अंदर घुसे।

1986 से पहले बारीदार ही मां की पूजन किया करते थे। श्राइन बोर्ड के गठन के बाद से इनका रोल पूरी तरह से खत्म कर दिया गया।

मैं इनके साथ ही खड़ा था। इनके अंदर जाते ही मैं भी पुरानी गुफा से अंदर घुसा, ताकि इन लोगों को दर्शन में कोई दिक्कत न हो। डीसी और एसडीएम के साथ पुलिसवाले भी थे, जिन्होंने गुफा में अंदर घुसने से पहले पैरों से जूते भी नहीं निकाले थे।

अंदर जैसे ही हमारा दोबारा सामाना हुआ तो डीसी ने मुझसे कहा कि, 'बारदारी साहब आज से आपके तमाम हक खत्म हो गए हैं। मेहरबानी करके आप लोग गुफा छोड़कर चले जाएं।' 67 साल के शंकरा सिंह कहते हैं, दो मिनट तक तो मैं कुछ बोल ही नहीं पाया। अवाक रह गया।

मैंने पूछा कैसे हमारे हक खत्म हो गए तो मुझे और मेरे दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। वहां हमें पुलिसवालों ने चोर बोला। अगले दिन बहुत से बारीदार थाने के बाहर जमा हो गए, तब हम लोगों को जमानत दी गई। तब से आज तक हम अपने हक के लिए तरस रहे हैं।

बारीदारोंं का कहना है कि बोर्ड ने मंदिर को पूरी तरह से कमर्शियल कर दिया। हर काम मुनाफे से जोड़कर देखा जाता है।

यह कहानी बारीदारों की है। वही बारीदार जो हजारों सालों से मां वैष्णोदेवी की पूजा करते रहे हैं। बारीदार मतलब बारी-बारी से मां वैष्णोदेवी की पूजा करने वाले। कहते हैं जब रास्ता भी नहीं था, तब से हमारे पूर्वज जंगलों के बीच से मां को पूजने जाया करते थे, क्योंकि श्रीधर हमारे ही वंश के थे, जिन्हें मां ने दर्शन दिए थे और त्रिकूट पर्वत पर बसने की बात कही थी।

तभी से हम लोग माता की पूजन करते चले आ रहे थे, लेकिन साल 1986 में 30 अगस्त की रात एकाएक हमें गुफा से बाहर फेंक दिया गया और सारे अधिकार श्राइन बोर्ड को दे दिए गए। किसी ने हमसे न पहले इस बारे में कोई बात की और न ही हमें लिखित में कुछ दिया। बस हमें फोर्स लगाकर बाहर कर दिया गया।

1971 की लड़ाई के बाद मां के दरबार में भक्तों की संख्या बढ़ना शुरू हुई। अब यह आंकड़ा 1 करोड़ को पार कर चुका है।

अब बारीदारों को अपने हक की लड़ाई लड़ते हुए 34 साल बीत चुके हैं। ये लोग अब भी कटरा के आसपास के गांव में ही बसे हुए हैं। 1986 तक 27 गांव में बारीदार थे, जो अब फैलकर 37 गांव में हो चुके हैं। हालांकि, अब बारीदारों का मंदिर में कोई रोल नहीं रहा। बारीदारों में चार कम्युनिटी के लोग आते हैं। इसमें तीन मनोत्रा, दरोरा और खस राजपूत समाज से हैं, जबकि सनमोत्रा ब्राम्हण होते हैं। ब्राह्मणों का काम पूजा-पाठ का होता था, राजपूतों का काम प्रबंधन करने का था।

बारीदारों में इन्हीं चार कम्युनिटी के शामिल होने का क्या कारण हैं? इस पर बारीदार संघर्ष कमेटी के अध्यक्ष श्याम सिंह कहते हैं, कटरा के आसपास पहले रहते ही हमारे पूर्वज थे। जब कृपाल देव जम्मू के राजा थे, तब उन्होंने मां की पूजन के लिए यह सिस्टम बनाया था। ताकि बारी-बारी से सभी लोगों की मां की सेवा का मौका मिले और काम भी चलता रहे। श्याम सिंह के मुताबिक, वो पटानामा आज भी डोगरी भाषा में लिखा रखा हुआ है। हमने उसका उर्दू में ट्रांसलेशन भी करवाया था।

बारीदार अपने हक के लिए कई बार लड़ाई लड़ चुके हैं। उनका कहना है कि हमें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया गया।

बारीदारों के भी छह ग्रुप थे। मां की सेवा का मौका एक साल के लिए एक ग्रुप को मिलता था। एक ग्रुप में कई गांवों के लोग शामिल होते थे। इस तरह से हर एक की बारी छह-छह साल के अंतर से आती थी। पहले न बहुत दर्शनार्थी आते थे, न कोई बहुत चढ़ावा था।

शंकरा सिंह कहते हैं कि 1971 की लड़ाई के बाद मां के दरबार में भीड़ बढ़ना शुरू हुई। फिर धीरे-धीरे देश-दुनिया से लोग यहां आने लगे। 1980-90 तक सालभर में आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या 8 से 10 लाख थी, जो अब एक करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है।

बारीदारों का कहना है कि, पीएम मोदी ने चुनाव के पहले उनकी समस्या हल करने का ऐलान किया था, लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं।

बारीदारों को उनका हक दिलवाने के लिए कई सरकारों ने वादे किए लेकिन अभी तक कोई कुछ करवा नहीं सका। श्याम सिंह के मुताबिक, जब फारुख अबदुल्ला यहां के मुख्यमंत्री थे, तब वो हमारा मामला विधानसभा में उठाने वाले थे। उन्होंने हमसे कहा था कि आपके साथ गलत हुआ।

लेकिन फिर हमें पता चला कि उन्हें आडवाणी जी ने कहा है कि आप हिंदुओं के मंदिर के मामले में हाथ मत डालिए। वरना उसी समय ऑर्डिनेंस आ गया होता। जो सरकारें आईं, उन्होंने हमें वोटबैंक की तरह देखा क्योंकि अब हम करीब 37 जिलों में हैं और जनसंख्या 23 से 25 हजार के बीच है।

कांग्रेस-पीडीपी की सरकार के समय भी वादा किया गया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। साल 1996 में एक चयन समिति बनी। जिसने दूसरे राज्यों के मंदिरों की रिपोर्ट दी। इसमें भी सामने आया कि तमाम प्रसिद्ध मंदिरों में वहां सालों से काम संभालने वालों को कुछ न कुछ हक दिया गया है, लेकिन यह बिल आने से पहले ही सरकार गिर गई और मामला खत्म हो गया।

2014 में पीएम मोदी ऊधमपुर में सभा के लिए आए थे, तो उन्होंने भी मंच से कहा था कि बीजेपी सरकार में आती है तो हम बारीदारों का स्थायी हल निकालेंगे, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। पीएम मोदी के इस बयान के बाद बारीदारों ने एकजुट होकर बीजेपी उम्मीदवार को अपने क्षेत्र में जीत दिलवाई थी।

बारीदार संघर्ष समिति के अध्यक्ष श्याम सिंह कहते हैं, मंदिर में दुकानों से करोड़ों रुपए किराया लिया जाता है, ऐसे में दुकानदारों का भक्तों के साथ क्या रवैया होगा, समझा जा सकता है।

श्याम सिंह कहते हैं, श्राइन बोर्ड ने मंदिर में पूरी तरह से कमर्शियलाइजेशन कर दिया। ऊपर की दुकानों का सालाना किराया नौ से दस करोड़ रुपए है। अब यदि कोई इतना किराया देगा तो वो यहां आने वाले भक्तों से कैसी कमाई करेगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बारीदार तो जमीन पर सोते थे।

अब तो बोर्ड ने ऊपर फैमिली तक रख ली हैं, जो हमारी आस्था के साथ खिलवाड़ है। बोले, यात्रा बंद थी तो अभी शेर और चीतों की यहां घूमने की बात सामने आई। हमारे पूर्वजों ने तो मां की पूजन तब से की थी, जब यह घनघोर जंगल था। फिर हमें अचानक ऐसे बाहर क्यों फेंक दिया गया। कितने परिवारों पर तो भूख से मरने की नौबत में आ गई।



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बारीदारों का कहना है कि हम सालों से मां की सेवा कर रहे थे लेकिन अचानक एक रात हमें मंदिर से बाहर फेंक दिया गया।


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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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