शेयर बाजार में एक सितंबर से आम निवेशकों के लिए नियम बदलने वाले हैं। अब वे ब्रोकर की ओर से मिलने वाली मार्जिन का लाभ नहीं उठा सकेंगे। जितना पैसा वे अपफ्रंट मार्जिन के तौर पर ब्रोकर को देंगे, उतने के ही शेयर खरीद सकेंगे। इसे लेकर कई शेयर ब्रोकर आशंकित है कि वॉल्युम नीचे आ जाएगा। आइए समझते हैं क्या है यह नया नियम और आपकी ट्रेडिंग को किस तरह प्रभावित करेगा?
सबसे पहले, यह मार्जिन क्या है?
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शेयर मार्केट की भाषा में अपफ्रंट मार्जिन सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले शब्दों में से एक है। यह वह न्यूनतम राशि या सिक्योरिटी होती है जो ट्रेडिंग शुरू करने से पहले निवेशक स्टॉक ब्रोकर को देता है।
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वास्तव में यह राशि या सिक्योरिटी, बाजारों की ओर से ब्रोकरेज से अपफ्रंट वसूली जाने वाली राशि का हिस्सा होती है। यह इक्विटी और कमोडिटी डेरिवेटिव्स में ट्रेडिंग से पहले वसूली जाती है।
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इसके अलावा स्टॉक्स में किए गए कुल निवेश के आधार पर ब्रोकरेज हाउस भी निवेशक को मार्जिन देते थे। यह मार्जिन ब्रोकरेज हाउस निर्धारित प्रक्रिया के तहत तय होती थी।
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इसे ऐसे समझिए कि निवेशक ने एक लाख रुपए के स्टॉक्स खरीदे हैं। इसके बाद भी ब्रोकरेज हाउस उसे एक लाख से ज्यादा के स्टॉक्स खरीदने की अनुमति देते थे।
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अपफ्रंट मार्जिन में दो मुख्य बातें शामिल होती हैं, पहला वैल्यू एट रिस्क (वीएआर) और दूसरा एक्स्ट्रीम लॉस मार्जिन (ईएलएम)। इसी के आधार पर किसी निवेशक की मार्जिन भी तय होती है।
अब तक क्या है मार्जिन लेने की प्रक्रिया?
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मार्जिन दो तरह की होती है। एक तो है कैश मार्जिन। यानी आपने जितना पैसा आपके ब्रोकर को दिया है, उसमें कितना सरप्लस है, उतने की ही ट्रेडिंग आप कर सकते हैं।
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दूसरी है स्टॉक मार्जिन। इस प्रक्रिया में ब्रोकरेज हाउस आपके डीमैट अकाउंट से स्टॉक्स अपने अकाउंट में ट्रांसफर करते हैं और क्लियरिंग हाउस के लिए प्लेज मार्क हो जाती है।
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इस सिस्टम में यदि कैश मार्जिन के ऊपर ट्रेडिंग में कोई नुकसान होता है तो क्लियरिंग हाउस प्लेज मार्क किए स्टॉक को बेचकर राशि वसूल कर सकता है।
नया सिस्टम किस तरह अलग होगा?
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सेबी ने मार्जिन ट्रेडिंग को नए सिरे से तय किया है। अब तक प्लेज सिस्टम में निवेशक की भूमिका कम और ब्रोकरेज हाउस की ज्यादा होती थी। वह ही कई सारे काम निवेशक की ओर से कर लेते थे।
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नए सिस्टम में स्टॉक्स आपके अकाउंट में ही रहेंगे और वहीं पर क्लियरिंग हाउस प्लेज मार्क कर देगा। इससे ब्रोकर के अकाउंट में स्टॉक्स नहीं जाएंगे। मार्जिन तय करना आपके अधिकार में रहेगा।
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प्लेज ब्रोकर के फेवर में मार्क हो जाएगी। ब्रोकर को अलग डीमैट अकाउंट खोलना होगा- ‘टीएमसीएम- क्लाइंट सिक्योरिटी मार्जिन प्लेज अकाउंट’। यहां टीएमसीएम यानी ट्रेडिंग मेंबर क्लियरिंग मेंबर।
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तब ब्रोकर को इन सिक्योरिटी को क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के फेवर में री-प्लेज करना होगा। तब आपके खाते में अतिरिक्त मार्जिन मिल सकेगी।
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यदि मार्जिन में एक लाख रुपए से कम का शॉर्टफॉल रहता है तो 0.5% पेनल्टी लगेगी। इसी तरह एक लाख से अधिक के शॉर्टफॉल पर 1% पेनल्टी लगेगी। यदि लगातार तीन दिन मार्जिन शॉर्टफॉल रहता है या महीने में पांच दिन शॉर्टफॉल रहता है तो पेनल्टी 5% हो जाएगी।
नई व्यवस्था में आज खरीदो, कल बेचो (बीटीएसटी) का क्या होगा?
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शेयर मार्केट में बीटीएसटी प्रचलित टर्म है, जब निवेशक आज किसी शेयर को खरीदता है और दूसरे ही दिन उसे बेच देता है। नए नियम से यह प्रक्रिया बदलने वाली है।
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यदि अगले ही दिन आपको स्टॉक बेचना है तो आपको वीएआर+ईएलएम मार्जिन चाहिए होगी। यदि एक लाख रुपए का रिलायंस स्टॉक आपने आज खरीदा, आपको उसे बेचने के लिए 22 हजार रुपए की मार्जिन कल आपके अकाउंट में रखनी ही होगी।
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ब्रोकर्स ने इसका भी रास्ता निकाला है। यदि आपने आज कोई शेयर खरीदा और उसका पूरा भुगतान ब्रोकर को किया है तो भी ब्रोकर एक्सचेंज को वीएआर+ईएलएम ही चुकाएगा। इससे आपके पास अगले दिन उस स्टॉक को बेचने के लिए पर्याप्त मार्जिन होगी।
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उदाहरण के लिए, यदि आपके एक लाख रुपए है और आपने रिलायंस खरीदा। ब्रोकर वीएआर+ईएलएम के तौर पर 22 हजार रुपए ब्लॉक करेगा और रिपोर्ट करेगा। इस तरह, अगले दिन एक लाख रुपए का रिलायंस बेचने के लिए बचे हुए 78 हजार में से आपको मार्जिन मिल जाएगी।
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बीटीएसटी ट्रेड्स की अनुमति देने के लिए कुछ ब्रोकर्स ने यह रास्ता निकाला है। लेकिन यह उन्हीं स्टॉक्स पर उपलब्ध है जिन पर वीएआर+ईएलएम 50% से कम है। चूंकि, टॉप 1,500 स्टॉक्स की वीएआर+ईएलएम 50% से कम है, इस वजह से बीटीएसटी संभव हो सकेगा।
इसका निवेशकों को क्या फायदा होगा?
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सेबी को नया नियम लाना पड़ा क्योंकि प्लेज किए जाने वाले स्टॉक्स के ट्रांसफर ऑफ टाइटल (ऑनरशिप) को लेकर दिक्कतें थी। कुछ ब्रोकर्स ने इसका दुरुपयोग किया।
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चूंकि, स्टॉक्स निवेशक के डीमैट खाते में ही रहेंगे, ब्रोकर इन सिक्योरिटी या स्टॉक का दुरुपयोग नहीं कर सकेगा। एक क्लाइंट के स्टॉक को प्लेज कर दूसरे क्लाइंट की मार्जिन बढ़ाना उनके लिए संभव नहीं होगा।
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मौजूदा प्लेज सिस्टम में स्टॉक्स ब्रोकर के कोलेटरल अकाउंट में होते थे, इसलिए उस पर मिलने वाले डिविडेंड, बोनस, राइट्स आदि का लाभ ब्रोकर उठा लेता था। अब ऐसा नहीं हो सकेगा।
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सभी सिक्योरिटी पर प्लेज की अनुमति होगी क्योंकि कुछ ब्रोकर एक्सचेंज से अनुमति होने के बाद भी कई सिक्योरिटी पर प्लेज स्वीकार नहीं करते थे।
निवेशकों को क्या नुकसान है?
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भारत में आम तौर पर स्टॉक्स के सेटलमेंट में दो दिन लगते हैं। यानी आप स्टॉक खरीदते हैं तो आपके डीमैट अकाउंट में उसे आने में दो दिन (T+2) लग जाते हैं। इसी तरह स्टॉक बेचने पर उसका क्रेडिट अकाउंट में पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं।
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यदि आपने एक लाख रुपए के शेयर बेचे और उसी दिन कुछ और खरीदना चाहते हैं तो नहीं खरीद सकेंगे। आपको प्लेज करना होगा और मार्जिन लेनी होगी। अब तक ब्रोकर बिक्री पर नोशनल कैश दे देते थे, जिससे उसी दिन दूसरा शेयर खरीदा जा सकता था।
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नई व्यवस्था में नोशनल कैश की व्यवस्था खत्म हो जाएगी। इस वजह से आपको बेचने पर उसका पैसा क्रेडिट होने का इंतजार करना होगा। उसके बाद ही आप कोई शेयर खरीद सकेंगे। अन्यथा आपको अपने अकाउंट के शेयर प्लेज कर मार्जिन जुटानी होगी।
ब्रोकरिंग हाउस नए सिस्टम का क्यों विरोध कर रहे हैं?
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ब्रोकरिंग हाउसेस को चिंता है कैश और डेरिवेटिव्स सेग्मेंट में मार्केट और उनके खुद के टर्नओवर कम होने की। उन्हें लग रहा है कि डेली टर्नओवर 20-30% कम हो जाएगा।
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क्लाइंट्स को अपने अकाउंट में हायर मार्जिन बनाकर रखनी होगी और इससे उनके रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट पर भी असर पडे़गा। उनकी रिस्क लेने की क्षमता भी कम हो जाएगी।
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इस बदलाव से न केवल ब्रोकर्स को बल्कि सरकार को भी नुकसान होगा। सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (एसटीटी) के तौर पर सरकार को मिलने वाला राजस्व कम होगा।
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