देश में सबसे ज्यादा दलित और मुसलमान कैदी यूपी में और आदिवासी मध्य प्रदेश की जेलों में बंद हैं, कॉमन जेलों में भीड़, लेकिन महिला जेलें खाली

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने साल 2019 के लिए जेल संबंधित एक रिपोर्ट जारी की है। इसके मुताबिक, देशभर में करीब 4.72 लाख कैदी हैं। इनमें 4.53 लाख पुरुष और 19 हजार 81 महिला कैदी हैं। जिसमें 70 फीसदी तो अंडर ट्रायल हैं, 30 फीसदी ही दोषी हैं। सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में एक लाख कैदी हैं। मध्य प्रदेश में 44 हजार 603 और बिहार में 39 हजार 814 कैदी हैं। 2019 में 18 लाख लोगों को कैद किया गया, जिसमें से 3 लाख लोगों को अभी भी जमानत नहीं मिल सकी है।

रिपोर्ट के मुताबिक, दलित, मुस्लिम और आदिवासी कैदियों की संख्या आबादी में उनके अनुपात से कहीं ज्यादा है। 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश में अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 16 फीसदी है, जबकि एनसीआरबी के आंकड़ों की मानें तो 21.7% दोषी दलित जेलों में बंद हैं।

अगर आदिवासियों की बात करें, तो दोषी कैदी 13.6% और 10.5% कैदी अंडर ट्रायल हैं। जबकि, इनकी कुल आबादी देश में 8.6% है। ओबीसी से ताल्लुक रखने वाले 34.9% दोषी जेलों में कैद हैं, जबकि इनकी आबादी 40% के आसपास है। जबकि, बाकी दूसरी जातियों का आंकड़ा 29.6% है।

मुस्लिम वर्ग की बात करें तो 16.6 फीसदी दोषी कैदी जेलों में बंद हैं और 18.7 फीसदी अंडर ट्रायल हैं। जबकि, देश में इनकी आबादी 14.2 फीसदी है। वहीं हिंदुओं की बात करें तो करीब 74 फीसदी दोषी जेलों में कैद हैं।

सोशल एक्टिविस्ट और आईआईएम अहमदाबाद की एसोसिएट प्रोफेसर रितिका खेड़ा कहती हैं कि जेलों में दलित, आदिवासी और मुसलमानों की संख्या ज्यादा होने से हम यह नहीं कह सकते कि इन समुदायों में क्राइम ज्यादा है। बल्कि, इससे यह जान पड़ता है कि देश में "रूल आफ लॉ" काफी कमजोर है।

रीतिका के मुताबिक, अंडर ट्रायल में इनकी संख्या ज्यादा इसलिए भी है कि इनके पास जमानत करवाने के लिए वकील नहीं है या पैसा नहीं है। उनकी गरीबी उन्हें जेल में रखती है। जबकि, ऊंची जाति और वर्ग के लोग, दोषी पाए जाने पर भी आसानी से जमानत ले लेते हैं। हाल ही में विकास दुबे, जिसका एनकाउंटर हो गया और जेसिका लाल के हत्यारे, मनु शर्मा को भी रिहा कर दिया गया।

वो कहती हैं कि कई बार आदिवासियों और मुसलमानों को झूठे केसों में भी फसाया जाता है। जैसे कि छत्तीसगढ़ में सोनी सॉरी को गिरफ्तार किया गया और उनके साथ जेल में बदसलूकी की गई। इस तरह के और भी कई उदाहरण हैं।

देश में सबसे ज्यादा दलित कैदी यूपी में हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश और पंजाब के जेलों में बंद हैं। वहीं, सबसे ज्यादा आदिवासी कैदी मध्य प्रदेश में हैं और सबसे ज्यादा मुसलमान यूपी की जेलों में बंद हैं।

पांच साल पहले यानी 2015 की बात करें तो उस समय भी दलित और आदिवासी दोषी कैदियों की संख्या लगभग इतनी ही थी। 2015 में 21% दोषी दलित, 13.7% दोषी आदिवासी और 15.8% दोषी मुसलमान जेल में थे। रिपोर्ट के मुताबिक, एससी/एसटी एक्ट के तहत 2019 देशभर में 628 लोग जेल में हैं। सबसे ज्यादा यूपी में 141, मध्यप्रदेश में 111और बिहार में 79 लोग जेल में हैं।

18.3 फीसदी कैदी ही महिला जेलों में हैं

देश में कुल 19 हजार 81 महिला कैदी हैं, इनमें से सिर्फ 18.3 फीसदी यानी 3 हजार 652 ही महिलाओं के लिए बने जेलों में कैद हैं। जबकि, 16 हजार 261 महिलाएं देश की दूसरे जेलों में कैद हैं। देश में कुल महिला जेलों (वुमन जेल) की संख्या 31 है। राजस्थान में सबसे ज्यादा 7 महिला जेल हैं।

2014 से 2019 के बीच महिलाओं के लिए बने जेलों की क्षमता 34.6% बढ़ी है, लेकिन इस दौरान कैदियों की संख्या सिर्फ 21.7% ही बढ़ी है। 2014 में महिलाओं के लिए बने जेलों में 62% महिलाएं कैद थीं, जबकि 2019 में आंकड़ा घटकर 56.1% हो गया।

उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ ये चार ऐसे राज्य हैं, जहां गैर-महिला जेलों में महिला कैदियों की संख्या क्षमता से ज्यादा है। लेकिन, राजस्थान में 7 महिला जेल होने के बाद भी तीन हिस्सा खाली ही है। यही स्थिति तमिलनाडु (5 महिला जेल) और बाकी राज्यों की भी है।

महिला जेल खाली और कॉमन जेलों में ओवरक्राउडिंग क्यों?

अब सवाल उठता है कि महिला जेलों में महिलाओं की संख्या कम क्यों है? जबकि गैर-महिला जेलों में जरूरत से ज्यादा भीड़ है। इस बारे में ओवरक्राउडिंग और जेलों में कैदियों की बढ़ती संख्या को लेकर जेल सुधारक के रूप में काम करने वालीं और तिनका- तिनका की संस्थापक वर्तिका नंदा कहती हैं कि देश में कई राज्यों में महिला जेल नहीं हैं। ऐसे में अगर वहां अपराध दर्ज किया जाता है, तो कैदी वही रखे जाते हैं इसलिए महिला जेलों में इनकी संख्या कम है और कॉमन जेलों में ज्यादा। दूसरी वजह है कि देश में महिला अपराधियों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन उसके मुकाबले महिला जेलों के बढ़ने की रफ्तार धीमी है। इतना ही नहीं उन जेलों में महिला स्टाफ की भी कमी है।

वर्तिका कहती हैं कि एक और सबसे बड़ी वजह ये है कि देश में जहां महिला जेलों की संख्या ज्यादा होनी चाहिए, वहां कम है। कई जेल ऐसी भी हैं, जो बहुत दूर हैं, वहां कनेक्टिविटी नहीं है। इसलिए हमें जेल बनाते समय यह ध्यान रखने की जरूरत है कि वह किस जगह पर हो, कहां अपराध ज्यादा हैं, कहां बेहतर कनेक्टिविटी है। सही जगह पर जेल नहीं होने की वजह से ही देश के कई महिला जेलों में कैदियों की संख्या काफी कम है।

एक साल में 3.32 फीसदी बढ़े कैदी

इतना ही नहीं, जेलों में भीड़ भी बढ़ी है, यानी क्षमता से अधिक कैदी बढ़े हैं। 2015 में 100 लोगों के रहने की जगह पर 114 कैदी थे, जबकि 2019 में आंकड़ा 118 हो गया। दिल्ली में यह आंकड़ा 175 है। अगर विदेशी कैदियों की बात करें तो भारत में कुल 5 हजार 608 विदेशी कैदी जेल में हैं। इनमें 4,776 पुरुष और 832 महिला हैं। इसमें से 2,171 दोषी हैं और 2,979 अंडर ट्रायल हैं जबकि 40 बंदी हैं। 2018 के मुकाबले देश में कैदियों की संख्या 3.32 फीसदी बढ़ी है।

वर्तिका का कहना है कि हमारे देश में केसों का निपटरा वक्त पर नहीं होता है, अंडर ट्रायल का मामला जल्द नहीं सुलझता है। कई ऐसे लोग होते हैं, जिनके अपराध की सजा 2 महीने या 6 महीने होनी चाहिए थी, लेकिन उनका लंबा समय जेल में गुजर जाता है। चिंता की बात तो ये है कि इसके लिए कोई जिम्मेदार ही नहीं होता। इसके साथ ही कई लोग ऐसे होते हैं, जो हैबिचुअल ऑफेंडर होते हैं, वो बार- बार अपराध करते हैं और जेल में आते हैं। इससे भी कैदियों की संख्या बढ़ती है।

सबसे ज्यादा गुजरात के जेलों से फरार हुए कैदी

देशभर के जेलों से 2019 में कुल 468 कैदी फरार हुए, जिसमें से 329 ज्यूडिशियल कस्टडी से और 139 पुलिस कस्टडी से फरार हुए। इनमें से 231 को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। गुजरात से सबसे ज्यादा 175 कैदी फरार हुए। हालांकि, सिक्किम, मेघालय, गोवा और जम्मू कश्मीर सहित 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से एक भी कैदी फरार नहीं हुए हैं।

2019 में 116 कैदियों ने सुसाइड किया

2019 में जेल में कुल 1 हजार 775 कैदियों की मौत हुई है। इनमें से 1,544 की प्राकृतिक, 165 की अप्राकृतिक और 66 की मौत के कारण पता नहीं चल पाया। रिपोर्ट के मुताबिक, जिन लोगों की प्राकृतिक मौत हुई है, उनमें 1,466 कैदी बीमार थे, 78 कैदियों की मौत ज्यादा उम्र की वजह से भी हुई है। अप्राकृतिक मौत में सबसे ज्यादा मामला सुसाइड का है। 2019 में 116 कैदियों ने सुसाइड किया है। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा कैदियों की मौत हुई है।

वर्तिका नंदा कहती हैं कि ये एक सोशियोलजिकल और लीगल इश्यू है, जिसपर कलेक्टिवली ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जब से जेल बनी हैं, तब से इस तरह की घटनाएं हो रही हैं, एक तरह से ये जेलों के स्वभाव का हिस्सा हो गया है, जो ठीक नहीं है। जेल चाहती है कि जो यहां आए, वो जिंदा रहे, लेकिन कैसे जिंदा रहे इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपराध नहीं किया था या उनका ट्रायल जल्दी हो जाना चाहिए था, लेकिन उन्हें लम्बा वक्त जेल में गुजरना पड़ता है। इससे भी वे डिप्रेशन में आ जाते हैं और ऐसे कदम उठाते हैं। इसलिए ये जरूरी है कि जेल सुधार को लेकर काम किया जाए, सुविधाएं दी जाएं, लाइब्रेरी की व्यवस्था की जाए।

2019 में कुल 121 कैदियों को मौत की सजा दी गई। इनमें यूपी में 27, मध्य प्रदेश में 17 और कर्नाटक में 14 कैदियों को मौत की सजा दी गई। जबकि, 77 हजार 158 को आजीवन कारावास की सजा और 20 हजार 763 को 10 साल से ज्यादा की सजा दी गई।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 7 कैदी पर एक जेल स्टाफ है। सबसे ज्यादा झारखंड में 19 कैदी पर एक स्टाफ है। वहीं यूपी में 17, असम में 11, छत्तीसगढ़ में 10, बिहार में 8, मणिपुर-अरुणाचल में 1-1 कैदी पर एक स्टाफ है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Indian jails remained overcrowded, Higher share of Dalits, tribals, Muslims in prison than numbers outside


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3hZ2hZj
via IFTTT
SHARE

Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें