किसी भी काम को करने की भावना से ही सफलता या असफलता जुड़ी होती है। कोई काम बोझ समझकर या जबरदस्ती किया जाता है तो उसका अच्छा नतीजा ही नहीं मिल पाता है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव बताते हैं कि हर काम आनंदित यानी खुश होकर करना चाहिए। खुश होने के लिए कोशिश नहीं करनी पड़ती। ये एक स्वाभाविक क्रिया है। आध्यात्मिक रूप से देख जाए तो खुश होने के लिए खुद को सकारात्मक तरीके से समझना जरूरी है। खुद की अच्छी बातें और आदतों के बारे में सोचना चाहिए। इसके साथ ही योग और ध्यान करना चाहिए ताकि खुद को ईश्वरीय शक्ति के करीब महसूस कर सकें।
आनंद से ही आएगा उत्साह और मिलेगी सफलता
किसी भी काम को बोझ समझे बिना अच्छे मन से करना चाहिए। सीखने की इच्छा से किए गए काम में आनंद और खुशी मिलती है। कोई इंसान जितना खुश होगा, वो भीतर से उतना ही उल्लासित और उत्साहित महसूस करेगा। इस तरह काम करने से कम मेहनत में भी आसानी से सफलता मिलती है। जो इस तरह काम करता है ऐसे इंसान को लोगों के साथ की जरूरत कम महसूस होती है। ऐसा इंसान अकेले में भी उतना ही खुश रहता है जितना लोगों के बीच में।
नहीं पैदा किया जा सकता उल्लास और आनंद
किसी भी व्यक्ति में उल्लास को पैदा नहीं किया जा सकता। अगर यह ओढ़ा हुआ या कृत्रिम रूप से बनाया उल्लास है तो बेशक आपको लोगों के साथ की जरूरत महसूस होगी। अक्सर लोग उल्लास या आनंद का मतलब संगीत सुनना, नाचना और झूमना समझते हैं। जबकि आप शांति से बैठकर भी आनंद महसूस कर सकते हैं।
मेहनत का काम बनावटी हंसी
अगर आप आनंदित होकर कोई काम करते हैं तो आपको मेहनत करने की जरूरत नहीं होती। इस दुनिया में सबसे मुश्किल काम जीवन में खुश न होने पर भी लगातार खुद को बेहद खुश दिखाने की कोशिश करना है। इस तरह का दिखावा करने में बहुत बड़ी मात्रा में जीवन ऊर्जा लगती है। लोग बनावटी हंसी और खुशी बनाए रखते हैं, जिसमें उन्हें जबरदस्त उर्जा खर्च करनी पड़ती है। इससे गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं।
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