ट्रोल नहीं जानते वे किस बात के लिए, किस पर हमला कर रहे हैं

मैं ट्विटर पर अनेक लोगों के साथ खुशी-खुशी चैटिंग कर रहा था। इनमें कुछ पहचान के थे, लेकिन ज्यादातर को मैंने वहीं खोजा था, जिनकी साझा रुचियां थीं। लेकिन एक दिन अचानक मेरी टाइमलाइन पर पहला गाली-गलौच वाला ट्वीट आया। यह बहुत पहले की बात है। लेकिन तब से ऐसे ट्वीट बढ़ते जा रहे हैं।

विस्मय ने धीरे-धीरे चिढ़ को रास्ता दिया, चिढ़ ने गुस्से को, तब गुस्से ने बेपरवाही को, क्योंकि मैंने महसूस किया कि जो मुझे लगातार गाली दे रहे हैं, वे यह भी नहीं जानते कि मैं कौन हूं। मैं तब मंत्रमुग्ध हो गया जब काफी देर तक कटु आदान-प्रदान के बाद उसने (शायद कोई पुरुष था, क्योंकि यह इसकी भाषा से पता चल रहा था) अचानक रुख बदला और मुझसे पूछा कि मैं आजीविका के लिए क्या करता हूं। एक क्षण के लिए तो मैंने सोचा कि वह कॅरिअर के लिए सलाह मांग रहा है।

हां, ट्रोल (मुझे जल्द पता चल गया कि उन्हें यह कहते हैं) भी आपके और मेरे जैसे सामान्य लोग हैं और इनमें से अनेक को यह भी नहीं पता कि वे किस बात का समर्थन और किस पर हमला कर रहे हैं। विचारधारा तो भूल जाएं, इन लोगों को साधारण व्याकरण भी नहीं आती और यह भी नहीं पता होता कि वे यहां किसलिए हैं। एक अनमने हत्यारे की तरह वे अपने काम पर निकलते हैं और ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, जो उनके लिए स्वाभाविक है।

उदाहरण के लिए जब वे मुझे मां की गाली देते हैं तो उन्हें यह भी पता नहीं होता कि मेरी मां का तो ट्विटर युग से बहुत पहले निधन हो गया था। वे दरअसल मेरे पीछे पड़े होते थे। और हास्यास्पद बात यह थी कि वे यह भी नहीं जानते थे कि मैं कौन हूं। इससे भी हास्यास्पद यह था कि उन्हें यह भी नहीं पता था कि वे मुझ पर हमला क्यों कर रहे हैं? वे खुद को एक सिपाही की तरह देखते थे, जो ट्विटर के सियाचिन में अपनी राष्ट्रवादी ड्यूटी निभा रहे थे। मेरी मां इस सबमें कहां से आई यह मैं अब तक नहीं जान सका हूं।

गालियों की भाषा किसी दुष्कर्मी के समान होती है। जिससे मैं यह अनुमान लगाता हूं कि इनमें अधिकांश शायद युवा, बेरोजगार और यौन कुंठित हैं, जो भारत के ‘हार्टलैंड’ में रहते हैं, जहां दुष्कर्म आम हैं। आंकड़ों के मुताबिक, यहां हर चार मिनट में एक दुष्कर्म होता है। एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक, यह हर 15 मिनट में एक है। वे जो भाषा इस्तेमाल कर रहे थे, वे स्पष्टतौर पर इसके अभ्यस्त नहीं थे। उन राष्ट्रविरोधी दिनों में अधिकांश ट्वीट अंग्रेजी में थे और उनकी गालियां उस भाषा का ही शाब्दिक अनुवाद थीं, जो वे बोलते हैं।

बंगाली और उर्दू, जिन दो भाषाओं को मैं जानता हूं, उनमें ऐसी लिंग आधारित गालियां नहीं हैं। मुझे बताया गया है कि अब लिंग के आधार पर भेदभाव खत्म हो गया है और इन ट्रोल सेनाओं में युवतियां भी भर्ती की गई हैं। लेकिन, जब गाली दी जाती है तो लिंग के आधार पर भेदभाव दिखता है। किसी ने भी मुझे पिता या भाई की गाली नहीं दी है। मेरी धारणा है कि जब गाली देने की बात आती है तो युवा लड़के ज्यादा दागते हैं। लड़कियां बस ठेस पहुंचाने वाली बातें कहती हैं, जो ठीक है। इन्हें सहा जा सकता है।

मुझे यह भी संदेह कि मैं उनके निशाने की सूची में बहुत नीचे हूं, इसलिए वे सिर्फ मूर्खों को मेरे पास भेजते हैं (उन्होंने सर्वश्रेष्ठ ट्रोल राहुल व शशि थरूर के लिए तथा किसी अनजाने कारण से चेतन भगत के लिए रखे हैं)। इसीलिए उनकी गाली तो उनकी भाषा की तरह बहुत निम्न स्तर की होती है, उन्हें भाषा बोध भी नहीं होता। उनसे एक साधारण सवाल पूछो और वे गायब हो जाएंगे। इनमें कई मुझे महिला समझते हैं तो उनके अपशब्द अधिक सेक्सुअल हो जाते हैं। (असल में मेरे नाम के प्रीति से वे महिला समझते हैं और उन्हें किसी भी भाषा का ज्ञान नहीं होता इसलिए वे प्रीति के आगे लगे ईश से यह नहीं समझ पाते कि इसका अर्थ ईश्वर होता है जो पुरुषवाचक है)।

परिष्कृत लोगों का इसमें शामिल होना ज्यादा आश्चर्यजनक है। मुझे लगता है कि ये अपनी ओर ध्यान खींचने को लालायित भक्त हैं। ये लोग जब किसी भीड़ को किसी व्यक्ति पर हमला करते हुए देखते हैं तो ये अपनी मर्सडीज को रोकर उस व्यक्ति को बचाने की बजाय खुद उस भीड़ में शामिल हो जाते हैं। कुछ मिनट मदार्नगी दिखाने के बाद वे चले जाते हैं और उस दिन के लिए उनका राष्ट्रवाद का दिखावा पूरा हो जाता है।

सौभाग्य से पिछले कई सालों में ट्रोल समझ गए हैं कि मैं जिद्दी हूं, पलटकर जवाब देता हूं। इससे भी खराब यह है कि मैं उन्हें नजरअंदाज करता हूं। कभी-कभी जब भाषा बहुत ही अप्रिय हो जाती है तो इनमें से एक दो को ब्लॉक कर देता हूं। इससे वे चिंतित हो जाते हैं। मुझे लगता है कि शिकार खोने पर उनके मेहनताने में कटौती होती होगी।

अगर आप सोचते हैं कि मैं घमंड कर रहा हूं तो याद रखें कि मुझसे बहुत बहादुर लोग हैं। राना अयूब को ही लें, जो हर समय इसका सामना करती हैं। सिर्फ इस वजह से कि वे राना अयूब हैं। या आलिया भट्‌ट, जिन्हें भाई-भतीजावाद के लिए बुरी तरह ट्रोल किया गया। या दीपिका पादुकोण को जेएनयू में विद्यार्थियों के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए। या अनुष्का शर्मा को, जब भी विराट खराब प्रदर्शन करते हैं। यहां तक कि सीएसके के हारने पर महेंद्र सिंह धोनी की पांच साल की बेटी को दुष्कर्म की धमकी दी जाती है। इन लोगों से तुलना करें तो मैंने कुछ भी नहीं झेला है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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प्रीतीश नंदी, वरिष्ठ पत्रकार व फिल्म निर्माता


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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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