भगवान महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। उनका जीवन ही उनका संदेश है। भगवान महावीर महज एक धर्म विशेष के ही तीर्थंकर नहीं बल्कि एक जीवन दर्शन और सुखी जीवन पद्धति को बनाने वाले थे। वो एक युग प्रवर्तक भी थे। उनकी बताई गई बातों को समझकर कोई भी इंसान अपनी परेशानियां खुद ही दूर कर सकता है। इसके साथ ही समाज की व्यवस्था भी बनाकर रख सकता है।
- अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने अपने शोध में कहा है कि गरीबी का कारण संसाधनों की कमी नहीं बल्कि संसाधनों का असमान वितरण है। भगवान महावीर ने हजारों साल पहले समाज की इस समस्या पर विचार कर अपरिग्रह सिद्धांत के जरिये समाज में संसाधनों को समान रुप से बांटे जाने की व्यवस्था पर जोर दिया था। अपरिग्रह सिद्धांत का मतलब होता है किसी भी चीज को जरूरत से ज्यादा इकट्ठा नहीं करना।
अपने ही क्रोध से भस्म होता है मनुष्य
भगवान महावीर के नजरिये में इंसान का नियंत्रण कक्ष उसके भीतर ही होता है। मूल बात वृत्ति की है, नजरिये की है, हम भीतर से अपने को देखे और उसके हिसाब से इस दुनिया को समझें। किसी भी इंसान की सारी उलझनें उसके अंदर से ही पैदा होती हैं। इसलिए भगवान महावीर इंसान के अन्दर की वृत्ति को सुधारने की बात करते थे। उनका कहना था कि कोई भी इंसान अगर परेशान महसूस करे तो उसे खुद को ही अंदर से समझना चाहिए। ऐसा करने से ही उसे हर तरह की परेशानी की वजह पता चलेगी और उसको खत्म करने का तरीका भी मिल जाएगा।
हर इंसान को ध्यान रखने वाली बातें
- महावीर स्वामी का ज्ञान था कि इंसान हारता है तो अपनी ही तृष्णा से हारता है।
- इंसान भस्म होता है तो अपने ही गुस्से की वजह से अंदर ही अंदर खोखला होता जाता है।
- इंसान को उसका ही द्वेष हराता है। यानी जलन की भावना से इंसान खुद को ही हारा हुआ महसूस करता है।
- इंसान अपनी ही बैर भावना में वह उलझता है। उसका अहंकार ही उसके रास्ते की रुकावट है, बाहर तो कुछ है ही नहीं।
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