
जो ये सोचते हैं कि मोक्ष केवल सन्यास से ही मिल सकता है, या परमात्मा की प्राप्ति केवल सत्संग से हो सकती है। उनके लिए हमारे शास्त्रों ने बहुत सीधी समझाइश दी है। मोक्ष पर सबसे पहला अधिकार गृहस्थ का है। जो इंसान अपने गृहस्थ धर्म का पालन पूरी निष्ठा से करता है, उसे सबसे पहले मोक्ष मिलता है। वो भी बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के।
वास्तव में मोक्ष जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त होकर परमात्मा की शरण में जाने का नाम है। आपके साथ कोई प्रारब्ध नहीं जाता। सबकुछ यहीं रह जाता है। और जब इंसान के मन में मरते समय लोभ, मोह, वासना, दुःख या भय जैसे कोई भाव नहीं रहते हैं तो वो बंधनों से मुक्त स्वतः ही हो जाता है। इसके लिए जरूरी है कि वो सारे कर्म निर्लिप्त भाव से करे।
देवी पुराण में श्लोक कहा गया है...
न्यायागतधनः कुर्वन्वेदोक्तं विधिवत्क्रमात्।
गृहस्थोपि विमुच्येत श्राद्धकृत्सत्यवाक् शुचिः।। (देवी महापुराण)
अर्थ - जो न्याय मार्ग से धनोपार्जन करता है, शास्त्रोक्त कर्मों का विधिवत संपादन करता है, पितृ श्राद्ध आदि यज्ञ करता है, सर्वदा सत्य बोलता है तथा पवित्र रहता है, वह गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
यानी जो गृहस्थ इमानदारी से धन कमाता है। बिना अधिकार के किसी का धन नहीं लेता। शास्त्रों में बताई गई विधियों से श्राद्ध कर्म करता हो, यानी माता-पिता और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का भाव रखता हो, हमेशा सत्य बोलता हो। शरीर और मन से पवित्र रहता हो। ऐसा इंसान गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी मोक्ष का अधिकारी हो जाता है।
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