श्रीमद् भगवद् गीता के पहले अध्याय की शुरुआत में दुर्योधन द्रोणाचार्य को अपनी और पांडव सेना की खास बातें बता रहा था। दुर्योधन द्रोणाचार्य से कहता है कि आचार्य पांडव सेना में द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने व्यूह रचना की है। पांडवों की सेना में अर्जुन और भीम की तरह ही कई महारथी योद्धा हैं। जैसे युयुधान, विराट और राजा द्रुपद, धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज आदि।
महाभारत काल में महारथी उन लोगों को कहा जाता था जिनकी सेना में 11 हजार धनुर्धारी सैनिक का समूह होता था। पांडवों की सेना में ऐसे कई महारथी थे। जिनकी वजह से दुर्योधन का मन अशांत था। कौरव सेना में भी कई महारथी थे, लेकिन दुर्योधन के मन में शंका थी कि युद्ध में वह विजयी होगा या नहीं।
कौरवों से संख्या में कम थी पांडवों की सेना
युद्ध की शुरुआत में कौरवों की सेना पांडवों की सेना बहुत ज्यादा बड़ी थी। संख्या के मामले में कौरव काफी अधिक थे। फिर दुर्योधन को लग रहा था कि पांडवों के सेना संख्या में कम है, लेकिन सामर्थ्य के मामले में वह कौरवों की सेना से अधिक ही है। पांडवों के कई योद्धा अर्जुन और भीम के समान बलशाली थे। कौरव सेना में भी भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वथामा जैसे महारथी थे, लेकिन शंका की वजह से दुर्योधन को खुद पर भरोसा नहीं था। इसीलिए वह द्रोणाचार्य के सामने अपनी और पांडवों की सेना की शक्तियों का विश्लेषण कर रहा था। दूसरी ओर, पांडवों की सोच सकारात्मक थी। उनके साथ श्रीकृष्ण थे और वे धर्म के मार्ग पर थे, इसीलिए उन्हें अपनी जीत का पूरा भरोसा था।
शंका की वजह से मन रहता है, इसीलिए इसका त्याग करें
इस प्रसंग की सीख यह है कि किसी भी काम की शुरुआत में ही अगर सफलता को लेकर शंका हो गई तो उस काम में कामयाबी मिलना मुश्किल हो जाता है। शंका के कारण मन अशांत रहता है, अशांत से हम सही निर्णय नहीं ले पाते हैं। इसीलिए किसी भी काम की शुरुआत में शंका न करें। खुद पर भरोसा रखें और पूरी शक्ति के साथ और सकारात्मकता बनाए रखते हुए काम करना चाहिए। तभी सफलता मिल सकती है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2SBgUqq
via IFTTT
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें