देश के सिर्फ 6% किसानों को मिलता है MSP का फायदा, उसमें भी पंजाब-हरियाणा के ज्यादा, इसलिए विरोध इन्हीं इलाकों में

खेती से जुड़े 3 कानूनों के खिलाफ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। इन तीनों कानूनों से पंजाब, हरियाणा समेत कुछ राज्यों के किसान नाराज हैं। उन्हें चिंता है कि नए कानून से उपज पर मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म हो सकती है।

हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ये साफ कर चुके हैं कि MSP खत्म नहीं होने वाली। लेकिन 4 सवाल अब भी सबसे बड़े हैंः

  1. MSP होती क्या है?
  2. MSP की कीमत तय कैसे होती है?
  3. हर साल कितने किसानों को MSP का फायदा होता है?
  4. हर साल जितनी फसल पैदा होती, उसमें से कितनी सरकार MSP पर खरीदती है?

अब चलते हैं बारी-बारी...

1. सबसे पहले MSP होती क्या है?

MSP यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस, ये गारंटेड कीमत होती है, जो किसान को उनकी फसल पर मिलती है। भले ही बाजार में उस फसल की कीमतें कम ही क्यों न हों। इसके पीछे तर्क है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर न पड़े। उन्हें अपनी फसल की न्यूनतम कीमत मिलती रहे।

अभी तक जितनी जगहों से गुजरे हैं, वहां से पता चलता है कि देश में केवल 6% किसानों को ही MSP का फायदा मिलता है, जिनमें भी सबसे ज्यादा किसान पंजाब और हरियाणा के ही हैं। इस वजह से ही इन नए कानूनों का विरोध भी इन दोनों राज्यों में ही दिख रहा है।

2. कैसे तय होती है MSP? और मोदी सरकार में कितनी MSP बढ़ी?

किसी फसल पर कितनी MSP होगी, उसको तय करने का काम कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस (CCAP) करती है। सरकार CCAP की सिफारिश पर ही MSP तय करती है। अगर किसी फसल की बम्पर पैदावार हुई है, तो उसकी कीमतें गिर जाती हैं, तब MSP किसानों के लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइस का काम करती है। एक तरह से ये कीमतों के गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह है।

MSP के तहत अभी 22 फसलों की खरीद की जा रही है। इन 22 फसलों में धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन, तिल और कपास जैसी फसलें शामिल हैं।

3. अभी कितने किसानों को हर साल MSP का फायदा मिलता है?

खाद्य और सार्वजनिक वितरण मामलों के राज्यमंत्री रावसाहब दानवे पाटिल ने 18 सितंबर को राज्यसभा में बताया कि 9 सितंबर की स्थिति में रबी सीजन में गेहूं पर MSP का लाभ लेने वाले 43.33 लाख किसान थे। इनमें से 10.49 लाख पंजाब और 7.80 लाख किसान हरियाणा के थे। यानी, 42% से ज्यादा किसान पंजाब और हरियाणा के ही थे।

जबकि, खरीफ सीजन में MSP पर धान बेचने वाले किसानों की संख्या 1.24 करोड़ थी। इनमें से पंजाब के 11.25 लाख और हरियाणा के 18.91 लाख किसान थे। 25% से ज्यादा किसान पंजाब और हरियाणा के ही थे।

सरकार के मुताबिक खरीफ सीजन में MSP पर धान की फसल बेचने वाले किसानों की संख्या 2015 की तुलना में 2019 में 70% बढ़ गई। वहीं, रबी सीजन में गेहूं पर MSP का लाभ लेने वाले किसानों की संख्या भी 2016 की तुलना में 2020 में 112% बढ़ गई। खरीफ सीजन 2021 के लिए अब तक खरीद शुरू नहीं हुई है।

4. लेकिन, हर साल जितनी पैदावार, उसका आधा भी नहीं खरीदती सरकार

सरकार फसल पर जो MSP तय करती है, उसी कीमत पर किसानों से फसल खरीदती है। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 साल में गेहूं और चावल की जितनी पैदावार हुई, उसका आधा भी सरकार ने नहीं खरीदा।

फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) के मुताबिक 2015 में 1,044 लाख टन चावल की पैदावार हुई थी, जिसमें से सरकार ने 342 लाख टन यानी 33% ही सरकार ने खरीदा। इसी तरह 2019-20 में 1,179 लाख टन चावल की पैदावार हुई, जिसमें से सरकार ने 510 लाख टन यानी 43% खरीदी की।

वहीं, 2015 में 923 लाख टन गेहूं की पैदावार हुई, जिसमें से सरकार ने 230 लाख टन, यानी 25% गेहूं खरीदा। जबकि, 2019 में 1,072 लाख टन गेहूं पैदा हुआ, जिसमें से 390 लाख टन, यानी 36% गेहूं ही सरकार ने खरीदी की।



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Kisan Aandolan Farmer Protest Know What is MSP and MSP On Food Crop


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Milan Tomic

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