कहीं आलोचकों का मुंह बंद करने पर तुले पुजारी खुद ही तो मंदिर की अवमानना नहीं कर रहे?

अगर कोई भक्त मंदिर के सामने खड़ा होकर चिल्लाए कि गर्भगृह में कूड़ा पड़ा है, पुजारी अनाचार कर रहा है, मंदिर की मर्यादा भंग हो रही है, तो क्या वह मंदिर की अवमानना का दोषी है?

यह सवाल आधुनिक बेताल ने इस युग के विक्रमादित्य के कंधे पर सवार होकर उसे सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मानहानि के मुकदमे की विचित्र कहानी सुनाने के बाद पूछा। संवैधानिक गणतंत्र के इस युग का मंदिर है सर्वोच्च न्यायालय और पुजारी हैं न्यायाधीश। वह भक्त जो चिल्ला रहा है, उसका नाम है प्रशांत भूषण। आज नहीं पिछले 30 साल से चिल्ला रहा है। चाहे जो सरकार हो, प्रशांत भूषण न्यायपालिका में फैले भ्रष्टाचार के मुद्दे को लगातार और सही ढंग से उठाते रहे हैं।

सही ढंग से, यानी पहले सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को सूचित करते हैं, प्रतिवेदन देते हैं, और अगर सुनवाई ना हो तो मामले को सार्वजनिक तौर पर भी उठाते हैं। उसी प्रशांत भूषण के खिलाफ उसी सर्वोच्च न्यायालय में अचानक एक नहीं दो मानहानि के मुकदमे पर सुनवाई शुरू कर दी गई है। एक मामला पिछले महीने प्रशांत भूषण द्वारा टि्वटर पर की गई दो टिप्पणियों का है। दूसरा मामला 11 साल पहले प्रशांत भूषण द्वारा दिए इस बयान से शुरू हुआ था कि पिछले 16-17 मुख्य न्यायाधीशों में से आधे भ्रष्ट थे।

अब विक्रमादित्य ने अपने सवाल गिनाने शुरू किए

पहला, जब महामारी के चलते सुप्रीम कोर्ट में केवल अत्यावश्यक व तात्कालिक महत्व के मुकदमे ही सुने जा रहे हैं, ऐसे में अचानक इन दो मुकदमों को खोदकर निकालने की क्या जरूरत थी? जिस कोर्ट के पास इलेक्टोरल बांड व नागरिकता कानून जैसे राष्ट्रीय महत्व के मुकदमे के लिए समय नहीं है, उसके पास दो ट्वीट पर मुकदमा चलाने के लिए समय कैसे मिल गया?

दूसरा, हमेशा मंथर चाल से चलने वाली अदालत इस मामले में हड़बड़ी क्यों दिखा रही है? जिस पुराने मुकदमे की सुनवाई आठ साल से नहीं हुई थी, उसे अचानक तीन दिन के नोटिस पर दोबारा क्यों शुरू किया गया?

तीसरा, मुख्य न्यायाधीश के बारे में की गई टिप्पणी को लेकर दायर की गई जिस हास्यास्पद और अगंभीर याचिका को सेशन जज भी कूड़ेदान में डाल देता, उस पर सुप्रीम कोर्ट गौर क्यों कर रहा है?

चौथा, 32 जजों वाले सुप्रीम कोर्ट में इन दोनों मामलों को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की बेंच को ही क्यों सौंपा गया? जब न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की बेंच के सामने चल रहे बिड़ला-सहारा केस में मप्र के सीएम शिवराज सिंह चौहान प्रमुख आरोपियों में से एक थे (बाद में कोर्ट ने केस खारिज कर दिया था), उन्हीं दिनों मिश्रा द्वारा पारिवारिक शादी में चौहान को आमंत्रित किए जाने को लेकर प्रशांत भूषण ने न्यायाधीश की मर्यादा का सवाल उठाया था। उसके बाद एक नहीं कई बार न्यायमूर्ति मिश्रा खुली अदालत में भूषण पर टिप्पणी कर चुके हैं, उन पर अवमानना का केस चलाने की धमकी दे चुके हैं। उसी जज के सामने प्रशांत भूषण का केस क्यों लगाया गया?

पांचवा, प्रशांत भूषण की टिप्पणी कड़ी तो है, लेकिन क्या वह असत्य है? इसके सच-झूठ की पूरी तहकीकात किए बिना अवमानना के सवाल पर फैसला कैसे हो सकता है? जहां तक मोटरसाइकिल की बात है, उसमें यह भूल तो दिखाई देती है कि खड़े हुए मोटरसाइकिल पर हेलमेट पहनना अनिवार्य नहीं है, लेकिन इसके अलावा उस टिप्पणी में क्या बात है जो गलत है? रही बात पुराने जजों के भ्रष्टाचार की, उसके बारे में प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में लंबा हलफनामा दायर किया है, एक-एक जज का नाम लेकर उनके भ्रष्टाचार के दस्तावेजी सबूत पेश किए हैं। सुप्रीम कोर्ट उन सबूतों की जांच और उन पर खुली चर्चा के लिए तैयार क्यों नहीं है?

छठा, क्या प्रशांत भूषण पर मुकदमा चलाकर दंड देने से कोर्ट का मान बढ़ेगा या घटेगा? गड़े मुर्दे उखाड़कर एक विशेष बेंच द्वारा झटपट फैसला करने से कहीं प्रशांत भूषण के आरोप पुष्ट तो नहीं हो जाएंगे? क्या कोर्ट को अपना ध्यान उन सवालों पर नहीं लगाना चाहिए जिनसे वाकई जनमानस में कोर्ट का मान घटता है? क्या सुप्रीम कोर्ट को अररिया, बिहार के उस मजिस्ट्रेट का मामला स्वत: संज्ञान में नहीं लेना चाहिए जिसने गैंगरेप करने वालों की बजाय उसकी पीड़िता और उसके साथियों को जेल में भेज दिया?

यह सब सवाल गिनाने के बाद विक्रमादित्य ने अपना उत्तर दिया: ‘अगर भक्त पुजारियों पर जानबूझकर झूठे आरोप लगा रहा है, उसके प्रमाण देने से इनकार कर रहा है, तो वह मंदिर की अवमानना का दोषी है। समझदार पुजारी उसे दंड देने की बजाय उसके झूठ को सार्वजनिक कर देंगे ताकि बाकी भक्त गुमराह ना हो। लेकिन अगर पुजारी मंदिर की आड़ लेकर गंदगी छुपा रहे हैं, प्रमाण मिलने पर भी जांच से कतरा रहे हैं, ओहदे का फायदा उठाकर व्यक्तिगत खुन्नस निकाल रहे हैं और आलोचक का मुंह और बाकी सब की आंख बंद करने पर तुले हैं, तो वह पुजारी स्वयं मंदिर की अवमानना के दोषी हैं। मंदिर में आस्था रखने वाले हर भक्तजन का अधिकार ही नहीं धर्म भी है कि वह ऐसे अधर्मी पुजारियों के विरुद्ध आवाज उठाएं।’ संतोषजनक उत्तर पाकर बेताल फुर्र से उड़ गया। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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योगेन्द्र यादव, सेफोलॉजिस्ट और अध्यक्ष, स्वराज इंडिया


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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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